Skip to main content

Posts

Showing posts from May, 2023

संतुलन

 तब मै स्कूल जाना शुरू किया था।  पाँच बर्ष का रहा होगा।  

अहसास

हॅसना रोना जानता हूँ  पाकर खोना जानता हूँ  

শিব এবং শিব

  ভূমিকা "শিব এবং শিব" গ্রন্থে লেখা শিব- তত্ত্বকে নিজে উপলব্ধি দিয়ে বিচার করার প্রয়াসী হয়েছেন। তাঁর সে প্রয়াসের প্রতিফলন পাওয়া যাবে শিব সম্পর্কিত বিচার-ধারায়। এই গ্রন্থে উদ্ধৃত সমস্ত চিন্তা ভাবনা লেখকের একান্ত নিজস্ব ও মৌলিক । শিবের চরিত্রকে এক নতুন আলোকে দেখার এই প্রয়াস সুধী পাঠকবৃন্দকে মন্ত্রমুগ্ধ করে রাখবে। লেখকের এই প্রশংসনীয় উদ্যোগ পাঠককূলে সমাদৃত হবে বলে আমাদের বিশ্বাস । সাধারণ শব্দব্যুহের আশ্রয় নিয়ে শিব - তত্ত্বের রহস্য উদ্ধার করার জন্য লেখকের এই প্রয়াসকে সাধুবাদ । গঙ্গেশ্বর সিং Email- singhgangeswar2017@gmail.com

शिब एबं शिब

                                                                 आमुख "शिव और शिव" में लेखक नें शिव-तत्व को अपने नजरिये से देखने और परखने की विनप्न कोशिश की है। उसकी इसी कोशिश का प्रतिफलन है शिव से जुड़े कुछ विचार । इस पुस्तक में प्रतिविंधित सारे लेख मौलिक है, शिव चरित्र को नये आलोक में दर्शाते हैं और सुधी-पाठक को मंत्रमुग्ध करने में सक्षम से दिखते है। लेखक का यह सराहनीय प्रयास फाठकों के मन को अवश्य भायेगा। साधारण से शब्द व्यूह का आश्रय लेकर शिवतत्व के रहस्य को उनागर करने का लेखक के इस महती प्रयास को साधुवाद । गंगेश्वर सिंह Email- singhgangeswar2017@gmail.com

जोस खरोश

  आमुख :- मूलतः स्वयं पर अजमाया गया शब्द-जाल का कमाल कह सकते हैं इसे। स्वयं की रचना को पुनः पुनः पढ़कर गुनगुनाकर और ऊँच्चे स्वर में गा-गाकर प्रेरित होता हूँ, अन्तर की बुझती आग को सुलगाता हूँ, दहकाता हूँ और स्वयं को उसकी ज्वाला में देखता हूँ, गरम करता हूँ और ऊर्जावान बन पुनः जीवन पथ पर जोश- खरोश के साथ चल पड़ता हूँ। उदासी, निराशा और हताशा को चारो चित्त लेटाकर आगे बढ़ता हूँ पीछे मुढ़कर देखता भी नहीं,जरुरत भी नहीं पड़ती। बचपन में जब अंधेरी रात में घर से निकलता तो कोई अज्ञात कारणों से डरता था। उस डर से निपटने का एकमात्र उपाय होता था जोर-जोर से गाना गाना। मैं या तो हनुमान चालीसा का पाठ करता या यह नारा देता था “जो मुझसे टकरायेगा वह चूर-चूर हो जायेगा।'” ऐसा करते-करते अंधेरी रात की साया को चिरता हुआ गंतव्य तक पहुँच जाता था। स्वयं पर इतना भरोसा होने लगा कि मैं बचपन से श्मशान के आस-पास बैठकर पढ़ने से भी नहीं डरता था। आज तो “पेप टॉक” और “'मोटिवेशनल स्पीच'”' से सोशल मिडिया भरा-पड़ा है। यह समय की माँग है। कुछ इसी तर्ज पर मेरा “जोश-खरोश'” कविता संग्रह भी आप सब सुधि पाठकगण के सम्म

निचोड़

                                                            आमुख :- विचार शून्यता, खामोशी और कोलाहल की स्थिति में भी कुछेक भाव या उसकी स्फुरणा मानस पटल और हृदय की धड़कनों पर अचानक से नृत्य करने लगते हैं। इनसे निपटने की एक ही युक्‍क्ति तब दिखती है; वह है इनको न्यूनत्तम शब्दों में मूर्त रुप देना यानि लिपिबद्ध करना। उक्त भाव या स्फुरणा की उपयोगिता, प्रासंगिकता और विशेषता पर ऐसे में ज्यादा विचार करने का न ' स्कोप' रहता है और न ही 'जस्टीफिकेशन '। विगत्‌ तीन बरसों से यूँ ही लिखने मैं निमग्न रहा। अब जब इसे एक पुस्तक के रुप में छपवाने चला तब इसके आकार प्रकार को आकर्षक बनवाने के क्रम में जहाँ जिस तरह की गुंजाइश दिखी वहाँ काँट-छाँटकर आपके सन्मुख परोस रहा हूँ। इस पुस्तक में जितने भी लेख हैं सारे के सारे अलग रंग-रुप वाले है; एक दूसरे से कहीं भी मेल नहीं दिखता। इनमें मैं विशेष सजावट करता भी कैसे ? बस उनकी मूल प्रकृति में ही उनको छोड़ दिया। ख्याल में जो भाव आये उन्हीं को आधार बनाकर लिखना था। अतणएव एक भी लेख दो पृष्ठ से ज्यादा लम्बा नहीं है। मैंने इनके साथ खींचातानी करना उचित न समझा।

रिश्ते नाते

                                                  आमुख :- सुनते आ रहा हूँ कि हरेक रिश्तें का मूलाधार प्यार पर टिका है। समय के साथ सबकुछ बदलता है। आज रिश्तों में भी वह निःशर्त और निःस्वार्थ प्यार लापता सा हो गया है। आज तो यहाँ भी करार, टकरार और अस्वीकार रिश्तें के पीयूष रुपी प्यार के बीच बाधा बन खटकने लगे हैं। मानो आज सब बोझ सा बन गया है बस हमसब इसे मजबूरन ढोये जा रहे हैं। मैं मानता हूँ यह स्थिति बदलनी चाहिए । एक बार इस संकट पर विचार करना होगा। मुझे ऐसा लगा रिश्तें-नातें पप कुछ लिखूँ और बस लिखना शुरु किया। यह मेरी इस श्रृंखला की पहली पुस्तक हैं । अभी तो काफी रिश्तें हैं जिस पर लिखना जरुरी है। मैं बचपन से पचपन तक रिश्तों को जिस रुप में देखा हूँ, महसूस किया हूँ, भोगा हूँ और इन्हें जिया हूँ बस उन्हीं अनुभवों, भावों और संवेगों को शब्द की लड़ियों में पीरो कर परोस रहा हूँ। पाठकगण अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए स्वतंत्र हैं । मेरी उनसे ऐसी अपेक्षा रहेगी । अन्ततः -- आज फिर से तुममें वही रसधार, प्यार और दोनों के आधार की खोज है। सोचता हूँ आज भी कल की तरह ये थोक के भाव मिलते। ढूँढ़ता तो हँपर न जाने