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शिब एबं शिब





आमुख

"शिव और शिव" में लेखक नें शिव-तत्व को अपने नजरिये से देखने और परखने की विनप्न कोशिश की है। उसकी इसी कोशिश का प्रतिफलन है शिव से जुड़े कुछ विचार । इस पुस्तक में प्रतिविंधित सारे लेख मौलिक है, शिव चरित्र को नये आलोक में दर्शाते हैं और सुधी-पाठक को मंत्रमुग्ध करने में सक्षम से दिखते है। लेखक का यह सराहनीय प्रयास फाठकों के मन को अवश्य भायेगा। साधारण से शब्द व्यूह का आश्रय लेकर शिवतत्व के रहस्य को उनागर करने का लेखक के इस महती प्रयास को साधुवाद ।


गंगेश्वर सिंह

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बेबात की बात

    "दिल आ गया" जब कोई दिल से ऐसा कहता है तो यही समझना चाहिए कि बोलने वाला बंदा किसी के प्रेम में पड़ गया।पर सतही तौर पर विचार करने से ऐसा लगता है जैसे उसका दिल तब तक उसके पास था ही नहीं।असल में तभी उसका दिल उसे छोड़कर चला जाता है। अब बरसात में आँख की बीमारी कंजंक्टिवाइटिस या जय बंगला जब किसी को होती है तो वह भी कहता है "आँख आयी है"। यद्यपि तब तो आँख की रोशनी चली गयी होती है।

जोस खरोश

  आमुख :- मूलतः स्वयं पर अजमाया गया शब्द-जाल का कमाल कह सकते हैं इसे। स्वयं की रचना को पुनः पुनः पढ़कर गुनगुनाकर और ऊँच्चे स्वर में गा-गाकर प्रेरित होता हूँ, अन्तर की बुझती आग को सुलगाता हूँ, दहकाता हूँ और स्वयं को उसकी ज्वाला में देखता हूँ, गरम करता हूँ और ऊर्जावान बन पुनः जीवन पथ पर जोश- खरोश के साथ चल पड़ता हूँ। उदासी, निराशा और हताशा को चारो चित्त लेटाकर आगे बढ़ता हूँ पीछे मुढ़कर देखता भी नहीं,जरुरत भी नहीं पड़ती। बचपन में जब अंधेरी रात में घर से निकलता तो कोई अज्ञात कारणों से डरता था। उस डर से निपटने का एकमात्र उपाय होता था जोर-जोर से गाना गाना। मैं या तो हनुमान चालीसा का पाठ करता या यह नारा देता था “जो मुझसे टकरायेगा वह चूर-चूर हो जायेगा।'” ऐसा करते-करते अंधेरी रात की साया को चिरता हुआ गंतव्य तक पहुँच जाता था। स्वयं पर इतना भरोसा होने लगा कि मैं बचपन से श्मशान के आस-पास बैठकर पढ़ने से भी नहीं डरता था। आज तो “पेप टॉक” और “'मोटिवेशनल स्पीच'”' से सोशल मिडिया भरा-पड़ा है। यह समय की माँग है। कुछ इसी तर्ज पर मेरा “जोश-खरोश'” कविता संग्रह भी आप सब सुधि पाठकगण के सम्म...