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बेबात की बात

    "दिल आ गया" जब कोई दिल से ऐसा कहता है तो यही समझना चाहिए कि बोलने वाला बंदा किसी के प्रेम में पड़ गया।पर सतही तौर पर विचार करने से ऐसा लगता है जैसे उसका दिल तब तक उसके पास था ही नहीं।असल में तभी उसका दिल उसे छोड़कर चला जाता है। अब बरसात में आँख की बीमारी कंजंक्टिवाइटिस या जय बंगला जब किसी को होती है तो वह भी कहता है "आँख आयी है"। यद्यपि तब तो आँख की रोशनी चली गयी होती है।
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अन्तर्दृष्टि

ग्रामीण माहौल में ही तो मैं ने होश सँभाला था   

संतुलन

 तब मै स्कूल जाना शुरू किया था।  पाँच बर्ष का रहा होगा।  

अहसास

हॅसना रोना जानता हूँ  पाकर खोना जानता हूँ  

শিব এবং শিব

  ভূমিকা "শিব এবং শিব" গ্রন্থে লেখা শিব- তত্ত্বকে নিজে উপলব্ধি দিয়ে বিচার করার প্রয়াসী হয়েছেন। তাঁর সে প্রয়াসের প্রতিফলন পাওয়া যাবে শিব সম্পর্কিত বিচার-ধারায়। এই গ্রন্থে উদ্ধৃত সমস্ত চিন্তা ভাবনা লেখকের একান্ত নিজস্ব ও মৌলিক । শিবের চরিত্রকে এক নতুন আলোকে দেখার এই প্রয়াস সুধী পাঠকবৃন্দকে মন্ত্রমুগ্ধ করে রাখবে। লেখকের এই প্রশংসনীয় উদ্যোগ পাঠককূলে সমাদৃত হবে বলে আমাদের বিশ্বাস । সাধারণ শব্দব্যুহের আশ্রয় নিয়ে শিব - তত্ত্বের রহস্য উদ্ধার করার জন্য লেখকের এই প্রয়াসকে সাধুবাদ । গঙ্গেশ্বর সিং Email- singhgangeswar2017@gmail.com

शिब एबं शिब

                                                                 आमुख "शिव और शिव" में लेखक नें शिव-तत्व को अपने नजरिये से देखने और परखने की विनप्न कोशिश की है। उसकी इसी कोशिश का प्रतिफलन है शिव से जुड़े कुछ विचार । इस पुस्तक में प्रतिविंधित सारे लेख मौलिक है, शिव चरित्र को नये आलोक में दर्शाते हैं और सुधी-पाठक को मंत्रमुग्ध करने में सक्षम से दिखते है। लेखक का यह सराहनीय प्रयास फाठकों के मन को अवश्य भायेगा। साधारण से शब्द व्यूह का आश्रय लेकर शिवतत्व के रहस्य को उनागर करने का लेखक के इस महती प्रयास को साधुवाद । गंगेश्वर सिंह Email- singhgangeswar2017@gmail.com

जोस खरोश

  आमुख :- मूलतः स्वयं पर अजमाया गया शब्द-जाल का कमाल कह सकते हैं इसे। स्वयं की रचना को पुनः पुनः पढ़कर गुनगुनाकर और ऊँच्चे स्वर में गा-गाकर प्रेरित होता हूँ, अन्तर की बुझती आग को सुलगाता हूँ, दहकाता हूँ और स्वयं को उसकी ज्वाला में देखता हूँ, गरम करता हूँ और ऊर्जावान बन पुनः जीवन पथ पर जोश- खरोश के साथ चल पड़ता हूँ। उदासी, निराशा और हताशा को चारो चित्त लेटाकर आगे बढ़ता हूँ पीछे मुढ़कर देखता भी नहीं,जरुरत भी नहीं पड़ती। बचपन में जब अंधेरी रात में घर से निकलता तो कोई अज्ञात कारणों से डरता था। उस डर से निपटने का एकमात्र उपाय होता था जोर-जोर से गाना गाना। मैं या तो हनुमान चालीसा का पाठ करता या यह नारा देता था “जो मुझसे टकरायेगा वह चूर-चूर हो जायेगा।'” ऐसा करते-करते अंधेरी रात की साया को चिरता हुआ गंतव्य तक पहुँच जाता था। स्वयं पर इतना भरोसा होने लगा कि मैं बचपन से श्मशान के आस-पास बैठकर पढ़ने से भी नहीं डरता था। आज तो “पेप टॉक” और “'मोटिवेशनल स्पीच'”' से सोशल मिडिया भरा-पड़ा है। यह समय की माँग है। कुछ इसी तर्ज पर मेरा “जोश-खरोश'” कविता संग्रह भी आप सब सुधि पाठकगण के सम्म