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सबरस



आमुख :-

एक बार मेरे दिमाग में आया कि अगर सबरस को एक पात्र में ढाल दिया जाय तो बड़ा अनर्थ हो जायेगा। फिर तो खट्टा, मिठा, कसैला सब अपना मूल रस खो देगें। पर मेरी इस कविता संग्रह में सबरस एक साथ होते हुए भी अपना पृथक-पृथक सहअस्तित्व बनायें रख पाने में सक्षम हैं क्यों कि प्रत्येक रस की कविता अपने ठोस आधार पर टिकी हैं। भले एक पात्र में हों पर अपनी पात्रता में ये कविताएँ दाग नहीं लगने दे रही हैं। मेरा यह दृढ़ विश्वास है।

इस कविता संग्रह में देशभक्ति, प्रकृति, मानबी भाव की विभिन्न छाया, श्रृँगार-विरह वेदना-व्यथा के दर्शन होगें। हरेक मूड की परछाई की ताजगी से लबालब ये कविताएँ सुधि पाठकों को तरोताजा करने का दम रखती हैं। वैसे अंतिम निर्णय और फैसला तो आप ही करेगें। अपनी रची कविताएँ हैं, पुत्रवत स्नेह करने के हक और फर्ज से मुझे न रोके। मेरी इस उक्ति को दम्भ न समझें।

आपके सुझाव, प्रतिक्रिया और प्रेरणा की अपेक्षा मन में सँजोये लेखनी को थम कराता हूँ। बिदा लेता हूँ।


                                                                                गंगेश्वर सिंह

                                  Email- singhgangeswar2017@gmail.com


 

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शिब एबं शिब

                                                                 आमुख "शिव और शिव" में लेखक नें शिव-तत्व को अपने नजरिये से देखने और परखने की विनप्न कोशिश की है। उसकी इसी कोशिश का प्रतिफलन है शिव से जुड़े कुछ विचार । इस पुस्तक में प्रतिविंधित सारे लेख मौलिक है, शिव चरित्र को नये आलोक में दर्शाते हैं और सुधी-पाठक को मंत्रमुग्ध करने में सक्षम से दिखते है। लेखक का यह सराहनीय प्रयास फाठकों के मन को अवश्य भायेगा। साधारण से शब्द व्यूह का आश्रय लेकर शिवतत्व के रहस्य को उनागर करने का लेखक के इस महती प्रयास को साधुवाद । गंगेश्वर सिंह Email- singhgangeswar2017@gmail.com

जोस खरोश

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